Raja Virbhadra Singh Biography || राजा वीरभद्र सिंह की कहानी ||


यह कहानी है 1934 में जन्मे उसे बच्चे की जिसके सर  से मात्रा 13 वर्ष की उम्र में ही पिता का साया उठ  

गया असल में यह 13 साल का बच्चा राज घराने से  संबंध रखता था इसके पिता महाराज पदम सिंह की  

मृत्यु उसे समय हो गई

 जब यह केवल 13 वर्ष के द  जिसके बाद 1947 को इस बच्चे का राजतिलक किया गया  

इस छोटे से बच्चे को राजगद्दी पर बिठाया गया इसके  बाद इस बच्चे ने अपनी स्कूली शिक्षा शिमला से की  

उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यह बच्चा जिसका नाम  वीरभद्र सिंह था दिल्ली चला गया वीरभद्र सिंह ने BA की डिग्री  

हासिल कर ली|


 रामपुर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह  के पास सब कुछ था नाम पैसा शोहरत सब कुछ वीरभद्र  

सिंह ने मैं 1954 को महारानी रत्न कुमारी से  शादी कर ली जिससे इन्हें एक बेटी प्राप्त हुई  

अभिलाषा सिंह 2013 तक गुजरात के उच्च  न्यायालय में न्यायाधीश रही असल में राजा वीरभद्र  

सिंह अध्यापक बन्ना चाहते  थे |


परंतु पंडित जवाहरलाल  नेहरू ने इन्हें राजनीति के लिए प्रोत्साहित किया  

जिसके बाद 1962 के भारतीय आम
चुनाव में वीरभद्र सिंह  ने लोकसभा में एक सीट जीती अपने राजनीति कैरियर में  

राजा वीरभद्र सिंह
कभी नहीं हरे 1962 1968 1972 1980  तक यह लोकसभा के लिए चुने गए फिर इनकी जिंदगी में  

एक ऐसा पड़ाब आया जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया |


 यह घटना उसे समय की है जब रामलाल ठाकुर हिमाचल  

प्रदेश के मुख्यमंत्री इन्होंने जोड़-तोड़ से  1983 में सरकार तो बनवा ली परंतु उनके ऊपर टिंबर  

घोटाले का इल्जाम लग रहा था तो जिस वजह से हाई  कमांड दिल्ली ने उनसे जवाब मंगा बहुत जवाब देने  

में असमर्थ रहे जिस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद से  हटाकर वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया इसी  

वर्ष वीरभद्र की पत्नी का भी निधन हो गया इसके बाद  इन्होंने 1885 को प्रतिभा सिंह से विवाह किया इनका  

एक बेटा विक्रमादित्य सिंह भी है जो वर्तमान में  शिमला ग्रामीण से विधायक पद पर है |


 ये समय था 1985  

का जब वीरभद्र सिंह एक बार मुख्यमंत्री बन चुके द  इन्होंने विधानसभा भांग करवा कर समय से पहले चुनाव  

करवा लिए 1985 में वीरभद्र सिंह ने अपने चाहते  लोगों को टिकट दिए जिसमें रामलाल ठाकुर के सभी  

समर्थ को करे नतीजा यह रहा की राजा वीरभद्र सिंह  ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई इन्हें 50 से  

ज्यादा सीट प्राप्त हुई 1990 बिना किसी चुनावी लहर  के वीर का पहला सियासी इम्तिहान जोरदार मुकाबला हुआ  

शांता कुमार ने यहां कांग्रेस को चारों खाने चित  कर दिया कांग्रेस को मात्रा 8 सिम आई परंतु बड़ी  

बात यह रही की वीरभद्र अपनी गलतियों को सुधारते रहे  और दल को मजबूती प्रदान की शांता कुमार की यह सरकार  

ढाई तीन साल ही चल पाई जिसके बाद नवंबर 1993 में  चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को 55 सीट प्राप्त हुई  

चुनावो में शांता कुमार अपनी सीट तक नहीं निकल पाए |



  ये सरकार पूरे 5 साल चली 1998 में धूमल की सरकार  

बहुमत से आई जो पूरे 5 वर्ष तक चली इसके बाद फिर  से वीरभद्र की सरकार जो 2003 से 2007 तक 2012 से  

2017 तक मुख्यमंत्री पद पर बने हुए रहे 2017  में यह अपने कार्यकाल में पंच बार संसद और छह  

बार मुख्यमंत्री रहे 8 जुलाई 2021 यह वही दिन था  जिसने आधुनिक हिमाचल के निर्माता वीरभद्र सिंह को  

पंच तत्वों में विलीन करवा दिया लंबी बीमारी  से जूझने के बाद गुरुवार सुबह 3:40 शिमला के  

आईजीएमसी अस्पताल में इन्होंने आखिरी सांस ली इससे  पहले वीरभद्र सिंह दो बार कोरोना को मार दे चुके द 8  

जुलाई की सुबह वीरभद्र सिंह के निधन की खबर से सारा  हिमाचल मानो सुन हो गया हर हिमाचली की आंखें नाम हो  

गई चाहे वो व्यक्ति पक्ष का था या विपक्ष का था 8  जुलाई की सुबह हिमाचल आधुनिक हिमाचल के निर्माता  

को खो चुका था वीरभद्र सिंह असल में भगवान श्री  कृष्ण के वंशज माने जाते हैं यह भगवान श्री कृष्ण  

के 122वें राजा द इसके बाद रामपुर के पदम पैलेस  में वीरभद् सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का  

राजतिलक किया गया जो कृष्ण वंश के 123 राजा बने तो  |

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